पटना: - बिहार की राजनीति हमेशा से एक रंगमंच रही है—जहां ड्रामे, साजिशें और सत्ता की लालच ने हर बार नया तमाशा खड़ा किया है। इस मंच पर अब एक नया किरदार उभर रहा है नाम है प्रशांत किशोर जनसुराज पार्टी के मुखिया। कभी नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी जैसे दिग्गजों के लिए रणनीति बनाने वाले सियासी सलाहकार प्रशांत ने अब खुद मैदान में कदम रखा है। लेकिन उनकी हालिया प्रेस कॉन्फ्रेंस, जिसमें उन्होंने बिहार के शीर्ष नेताओं पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए ने एक तूफान खड़ा कर दिया है। कोई इसे भ्रष्टाचार के खिलाफ साहसी जंग कह रहा है, तो कोई इसे सियासी ब्लैकमेल का खेल। सवाल यह है? क्या प्रशांत किशोर सचमुच बिहार को ‘जंगल राज’ से निकालना चाहते हैं? या यह सिर्फ 2025 के विधानसभा चुनावों से पहले सत्ता पक्ष को झटका देने की चाल है? आइए, उनके दावों, प्रेस कॉन्फ्रेंस और बिहार की सियासी गलियारों की नब्ज को टटोलते हुए इस सवाल की गहराई में उतरें।
प्रशांत किशोर सलाहकार से सियासी योद्धा तक:-
प्रशांत किशोर या ‘पीके’ कोई आम नाम नहीं। 2011 में गुजरात में नरेंद्र मोदी के लिए काम करने से लेकर 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की ऐतिहासिक जीत तक, किशोर ने अपनी रणनीतिक सूझबूझ से देश की सियासत को हिलाकर रख दिया। 2015 में बिहार में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद के महागठबंधन को सत्ता तक पहुंचाने में उनकी भूमिका थी। लेकिन 2020 आते-आते किशोर का रास्ता बदल गया। उन्होंने जनसुराज अभियान शुरू किया, जो 2022 में एक पूर्ण राजनीतिक पार्टी बन गया। उनका दावा था—बिहार को भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और ‘जंगल राज’ से मुक्त करना। लेकिन 29 सितंबर 2025 को पटना में उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस ने सियासी हलकों में भूचाल ला दिया।
किशोर ने एनडीए के बड़े नेताओं - उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी, जेडीयू मंत्री अशोक चौधरी, स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय और अन्य पर संगीन आरोप लगाए। जमीन हड़पने, बेनामी संपत्ति, हत्या के मामलों में गड़बड़ी और सरकारी फंडों के दुरुपयोग जैसे इल्जामों ने बिहार की सियासत को गर्म कर दिया है लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है, "क्या ये आरोप सचमुच भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग हैं, या फिर सियासी ब्लैकमेल का हथियार?"
लगातार प्रेस कांफ्रेंस हर बार नया बम :-
29 सितंबर की प्रेस कॉन्फ्रेंस में किशोर ने बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी को अपने निशाने पर लिया। उन्होंने 1995 के तारापुर हत्याकांड का जिक्र किया, जिसमें छह लोगों की हत्या हुई थी। किशोर का दावा है कि इस मामले में सम्राट चौधरी मुख्य आरोपी थे, लेकिन उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में खुद को नाबालिग बताकर सजा से बच निकले। किशोर ने सम्राट के 2020 के चुनावी हलफनामे का हवाला दिया, जिसमें उनकी उम्र कुछ और बताई गई। “यह व्यक्ति हत्या के मामले में शामिल रहा, फिर भी बिहार का उपमुख्यमंत्री है। इसे तुरंत गिरफ्तार करना चाहिए और कैबिनेट से बर्खास्त करना चाहिए,” किशोर ने गरजते हुए कहा।
तस्वीर - बिहार के उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरीसम्राट चौधरी ने पलटवार किया और उन्होंने किशोर को ‘भ्रष्टाचारी’ करार दिया और कहा कि ये आरोप सिर्फ ध्यान भटकाने की कोशिश हैं। सम्राट ने यह भी कहा कि उनकी उम्र और शिक्षा पर सवाल उठाना बेतुका है। लेकिन किशोर यहीं नहीं रुके। उन्होंने सम्राट की शैक्षिक योग्यता पर भी तंज कसा, दावा किया कि सम्राट सातवीं कक्षा तक पास नहीं हैं, फिर भी वे मंत्री बन गए। “यह बिहार का ‘संस्थागत जंगल राज’ है,”
दूसरा बड़ा निशाना था जेडीयू के कद्दावर नेता और नीतीश कुमार के करीबी अशोक चौधरी। किशोर ने दावा किया कि अशोक ने पिछले दो वर्षों में 200 करोड़ रुपये की बेनामी संपत्ति बनाई। इसमें पटना में 23 कट्ठा जमीन का सौदा शामिल है, जो अशोक के निजी सहायक के नाम पर खरीदी गई और बाद में उनकी बेटी शाम्भवी चौधरी (समस्तीपुर से सांसद) के नाम ट्रांसफर कर दी गई। किशोर ने यह भी कहा कि शाम्भवी की शादी के बाद ये सौदे शुरू हुए, जो स्वर्गीय आईपीएस अधिकारी अचार्य किशोर कुणाल के बेटे से हुई। “अशोक की पत्नी और सास के नाम पर भी मनी ट्रेल है। अगर वे माफी नहीं मांगते और इस्तीफा नहीं देते, तो मैं 500 करोड़ की और संपत्ति का खुलासा करूंगा,” किशोर ने धमकी दी।
तस्वीर - अशोक चौधरी जदयू नेता अशोक चौधरी ने जवाब में 100 करोड़ रुपये का मानहानि नोटिस भेजा। उन्होंने कहा, “किशोर को कोर्ट समन से डर लगता है, इसलिए वे झूठे आरोप लगा रहे हैं।” जेडीयू ने इस मामले पर चुप्पी साध रखी है, जो किशोर के दावों को और रहस्यमयी बना रहा है।
तस्वीर -अशोक चौधरी की बेटी शाम्भवी चौधरी समस्तीपुर से सांसदकिशोर ने स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय पर उनकी पत्नी के बैंक खाते में 2 करोड़ रुपये के संदिग्ध जमा का आरोप लगाया। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल पर एक मेडिकल कॉलेज हड़पने और हत्या के मामले में शामिल होने का दावा किया। संजय जायसवाल पर भी भ्रष्टाचार के इल्जाम लगे। “ये एनडीए के नेता लालू प्रसाद से भी ज्यादा भ्रष्ट हैं,” किशोर ने कहा।
किशोर की सफाई: मैं बिहार कमाने नहीं आया:-
आरोपों के जवाब में किशोर ने अपनी वित्तीय पारदर्शिता का भी जिक्र किया। उन्होंने बताया कि पिछले तीन वर्षों में उनकी कंसल्टेंसी फर्म से 241 करोड़ रुपये की कमाई हुई, जिसमें से 31 करोड़ जीएसटी और 20 करोड़ आयकर के रूप में चुकाए गए। बाकी 98.5 करोड़ रुपये उन्होंने जनसुराज को दान कर दिए। “मैं बिहार कमाने नहीं आया। मेरा हर रुपया जांच के दायरे में है,” किशोर ने दावा किया। यह जवाब भाजपा सांसद संजय जायसवाल के उस सवाल के लिए था, जिसमें उन्होंने जनसुराज की फंडिंग पर सवाल उठाए थे।
ब्लैकमेल या साहसी कदम?
किशोर के आलोचक इसे ब्लैकमेल कह रहे हैं। भाजपा और जेडीयू का कहना है कि 2025 के चुनाव से ठीक पहले ये आरोप सिर्फ जनसुराज को वोट दिलाने की रणनीति हैं। सम्राट चौधरी ने कहा, “किशोर खुद भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। वे दूसरों पर उंगली उठाकर अपनी नाकामियां छिपा रहे हैं।” अशोक चौधरी के नोटिस में किशोर को ‘राजनीतिक अखंडता की कमी’ वाला बताया गया। X पर कई यूजर्स ने इसे ‘केजरीवाल मॉडल’ की नकल कहा। एक यूजर ने लिखा, “पीके बिहार में अरविंद केजरीवाल बनना चाहते हैं, लेकिन बिहार की जनता इतनी आसानी से नहीं फंसेगी।”
किशोर की प्रेस कॉन्फ्रेंसें एक सीरीज की तरह चल रही हैं। 19 सितंबर को चार नेताओं पर, 23 सितंबर को अशोक चौधरी पर, और 29 सितंबर को सम्राट चौधरी पर हमला। हर बार ‘इस्तीफा दो, वरना और खुलासा’ की धमकी। यह रणनीति कुछ लोगों को ब्लैकमेल जैसी लगती है। एक X पोस्ट में लिखा गया, "किशोर का हर प्रेस कॉन्फ्रेंस एक नया ड्रामा है सबूत हैं तो कोर्ट क्यों नहीं जाते?"
लेकिन किशोर के समर्थकों का नजरिया अलग है। उनका कहना है कि बिहार में भ्रष्टाचार इतना गहरा है कि बिना ठोस सबूतों के कोई बड़ा नेता सामने नहीं आ सकता। किशोर ने जमीन रजिस्ट्री, बैंक स्टेटमेंट और कोर्ट रिकॉर्ड जैसे दस्तावेज दिखाए।
पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह ने कहा, “सम्राट चौधरी को अपनी डिग्री और उम्र का सबूत देना चाहिए।” X पर एक यूजर ने लिखा, “पीके ने एनडीए की पोल खोल दी बिहार को ऐसे ही साहसी नेता चाहिए।”
किशोर की 10,000 किलोमीटर की पादयात्रा और जनसुराज अभियान ने ग्रामीण बिहार में खासा समर्थन जुटाया है। 2024 के उपचुनावों में जनसुराज ने आरजेडी को हराने में मदद की थी। विश्लेषक इसे ‘क्लीन स्लेट पॉलिटिक्स’ कहते हैं—भ्रष्टाचार के खिलाफ साफ छवि की रणनीति, जो कभी भाजपा की थी, अब किशोर उसी हथियार से उसे चुनौती दे रहे हैं।
बिहार की सियासत: भ्रष्टाचार का पुराना इतिहास:-
बिहार में भ्रष्टाचार कोई नई कहानी नहीं। लालू प्रसाद के ‘जंगल राज’ में अपहरण और रंगदारी उद्योग बन गया था। नीतीश कुमार ने ‘सुशासन’ का नारा दिया, लेकिन उनके शासन में भी भ्रष्टाचार के कई मामले सामने आए। किशोर के आरोपों ने एनडीए को रक्षात्मक स्थिति में ला दिया है। भाजपा ने हाल ही में महिलाओं के लिए 7,500 करोड़ रुपये की योजना लॉन्च की, जो डैमेज कंट्रोल का प्रयास लगता है। नीतीश कुमार की चुप्पी भी सवाल उठा रही है। क्या वे अपने सहयोगियों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे, या किशोर के हमले को चुपचाप सहेंगे?
क्रांति या सियासी नौटंकी?
बिहार की गलियों में, चाय की दुकानों पर, और सोशल मीडिया पर इस मुद्दे पर बहस छिड़ी है। कई लोग किशोर को ‘बाहरी’ मानते हैं, जो दिल्ली से आकर बिहार की सियासत को हिलाना चाहता है। एक चायवाले ने कहा, “सब नेता चोर हैं, लेकिन किशोर साहब कम से कम बोल तो रहे हैं।” वहीं, एक कॉलेज स्टूडेंट ने कहा, “पीके के पास सबूत हैं, तो कोर्ट क्यों नहीं जाते? प्रेस कॉन्फ्रेंस से क्या होगा?” X पर एक पोस्ट में लिखा गया, “बिहार की जनता अब समझदार है। पीके का ड्रामा ज्यादा दिन नहीं चलेगा।”
प्रशांत किशोर के दावे बिहार की सियासत में एक नया मोड़ लाए हैं। अगर उनके आरोप सही साबित हुए, तो यह एनडीए के लिए भूचाल होगा। लेकिन अगर ये झूठे निकले, तो जनसुराज की साख दांव पर लग जाएगी। किशोर ने ईडी और सीबीआई जांच की चुनौती दी है—अगर गड़बड़ी मिली, तो वे जेल जाने को तैयार हैं। लेकिन सवाल वही है: क्या यह भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग है, या सियासी ब्लैकमेल?
बिहार की जनता के सामने एक मौका है। क्या वे पुरानी सत्ता को चुनेंगे, जो भ्रष्टाचार के दागों से भरी है? या किशोर की नई उम्मीद को आजमाएंगे, जो शायद साहस है, शायद नौटंकी? समय बताएगा। लेकिन एक बात साफ है—प्रशांत किशोर ने बिहार की सियासत को झकझोर दिया है। उनकी यह ‘क्रूसेड’ ब्लैकमेल हो या क्रांति, बिहारवासियों को अब फैसला करना है कि वे किसके साथ हैं—पुराने खेल के खिलाड़ी, या नए सपनों का सौदागर?



